Friday, December 2, 2011

{ ९५ } {Dec 2011}





काँटे कभी न चुभते हैं फ़ूलों को
फ़ूलों को कब काँटों से दर्द हुआ
ये भरम तो अपने मन का ही है
जो फ़ूलों से भी हमको दर्द हुआ ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


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