Friday, April 12, 2013

{ ५२५ } {April 2013}





हार हो या कि जीत हो, परवाह क्या
क्यों न तम के शिविर में किरणे धरें
हम लहलहाते पुष्प-वन की गन्ध हैं
जीर्ण पत्रों की तरह फ़िर क्यों झरे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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