Thursday, April 18, 2013

{ ५५७ } {April 2013}





पता नहीं क्यों तुमसे इतना.... इस मन को अनुराग है
भ्रमर जानता फ़ूल-फ़ूल को... किसमें कितना पराग है
अलसाए से कभी हो तुम... कभी सकुचाए से लगते हो
चंचल चितवन और अन्तर्हास जगाता हृदय में आग है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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