Sunday, April 7, 2013

{ ५२०} {April 2013}





प्यास ही प्यास है जमाने में
एक बदली कहाँ-कहाँ बरसे
कोई बेवजह उसे छलकाये
कोई दो घूँट के लिये तरसे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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