Thursday, April 18, 2013

{ ५५० } {April 2013}





आए हैं यूँ बहुत से झँझावात पर हुई न कम चाहत
बढती रही निशदिन हरपल दर्द में जीने की आदत
बन गया दर्द का सागर पर नदी की तरह बहा नहीं
अब दर्द भरे घर में भी कोई दर्द देता नहीं है राहत।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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