Wednesday, October 8, 2014

{ ७९८ } {Sept 2014}





ख्वाबों से पु्रअश्क ये रातें ज़ख्म हरा ही करतीं हैं
शायद इसी लिये इन ख्वाबों में ही जीना चाहता हूँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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