Monday, February 13, 2012

{ १५७ } {Feb 2012}






चाहत की बाहों में अब मिलन के इन्द्रधनुष रच डालो
माथे की शकनो में उन खोए सम्बन्धो को दुलरा लो
सन्नाटा पसरा अन्तर-घाटी में, राग नही आँसू-माटी मे
अएपण के दर्पण से अब उलझे विश्वासों को सुलझा लो ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


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