Friday, February 10, 2012

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सुर-सप्तकों से अलग एक स्वर हो
मौन रहती हो जहाँ में, पर मुखर हो
जानता हूँ बिन्दु में न ठहराव तेरा
सिन्धु की हर लहर में एक लहर हो ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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