Thursday, February 23, 2012

{ १७७ } {Feb 2012}





पल-पल आती-जाती रहती है
मेरी चाहत की दरिया में लहरें
युग का बेसुध सा तट मैं आखिर
ये चंचल आँचल क्यों न फ़हरें ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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