Wednesday, May 9, 2012

{ २६५ } {May 2012}




वंशधर गाँधी के कब तक रहेंगे रौंदते इस चमन को
गुल जमींदोज़ हुए, खार ही खार दिख रहे मौसम को
क्या कहें, शब्द नहीं पर असलियत कैसे छुप पायेगी
कैसे सुने दर्द और भूख से निकलती सिसकियों को।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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