Monday, May 7, 2012

{ २५२ } {May 2012}





बन्द हो गईं पलकें, लगी देखने अपना मन
स्वासों से उभरते नये स्वर, गीत नव-नूतन
भावनायें अनुभूतियों का कर रही नीराजन
चेह से देह मिली मन-चेतना कर रही नर्तन।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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