पल्लव
Friday, October 7, 2011
{ ६ } { October 2011 }
स्रष्टि भी एक काव्य ही है जिसकी
अपनी गति और लय हुआ करती
टूटती है जब कभी जो यह लय तो
भूमितल पर प्रलय ही हुआ करती।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment