पल्लव
Friday, October 7, 2011
{ ३ } { October 2011 }
अपने आप बना करती है जेहन में अजब एक तस्वीर
दिल को घेरे रखती हैं, एक अजनबी खुश्बू की जंजीर ।
सब कुछ भूल चुके हैं लेकिन अब भी दिल में उसकी याद
कब-कब आँखें बिन आँसू रोईं, कैसे निगाह बनी जंजीर।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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