पल्लव
Thursday, October 20, 2011
{ ४९ } {Oct 2011}
मुस्कराहट तो है उनके होठों पर
शक भरा भीतर क्या किया जाए
खुशनुमा बीत जाती यह जिन्दगी
बुनियाद शक की क्या किया जाए ||
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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