पल्लव
Friday, October 21, 2011
{ ५८ } {Oct 2011}
दाह-दुःख की न कोई भी सूरत थी
जिन्दगी कितनी ही ख़ूबसूरत थी
याद आता अपना बचपन जब भी
एक-दो पल की तो हर जरूरत थी ||
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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