पल्लव
Saturday, October 8, 2011
{ १४ } { October 2011 }
बिन बोले शब्दों के तीरों से
कितने लोग आहत होते है
हमने ही तो काँच बिखेरे है
अब चुभने पर क्यो रोते है।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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