पल्लव
Thursday, October 27, 2011
{ ६६ } {Oct 2011}
यह शै लाजवाब लगती है
रोशनी बेहिसाब लगती है
मुझे कुछ देर और पढने दे
तेरी सूरत किताब लगती है ||
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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