मेरी तनहाइयों को क्या सहलाएंगें
जब हो गए परायों से अपने लोग।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
तनहा हूँ मैं, तनहा हैं राहें भी, साथ तनहाइयों से रहा अपना
खो गया इस कदर जमाने में, पूछता रहा सबसे पता अपना।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
जीस्त की आह में, मौत की पनाह में
जुर्म चमन पर हुए, बागबाँ की निगाह में।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
श्रद्धा और विश्वास तुम जतलाओगे कैसे
सजदे में गर सर को झुकाना नहीं आता।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ख्वाब कभी लगते हैं परिंदों की मानिन्द
यही ख्वाब कभी-कभी सैय्याद लगते हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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