Tuesday, January 3, 2023

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मेरी तनहाइयों को क्या सहलाएंगें 
जब हो गए परायों से अपने लोग। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




तनहा हूँ मैं, तनहा हैं राहें भी, साथ तनहाइयों से रहा अपना 
खो गया इस कदर जमाने में, पूछता रहा सबसे पता अपना। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




जीस्त  की आह  में, मौत  की  पनाह  में 
जुर्म चमन पर हुए, बागबाँ की निगाह में। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




श्रद्धा और विश्वास तुम जतलाओगे कैसे 
सजदे में गर सर को झुकाना नहीं आता। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




ख्वाब कभी लगते हैं परिंदों की मानिन्द 
यही ख्वाब कभी-कभी सैय्याद लगते हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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