जबसे मरघटों ने कनारों पर कब्जा कर लिया
साहिल पर तड़प रहा है बेघर हुआ सन्नाटा।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
दरमियाँ यों न फासले रखो
काश ऐसे भी सिलसिले रखो
अपने इस उदास आँगन में
फूल उम्मीद के कहिले रखो।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
दरमियाँ हैं दूरियाँ मगर दिल नजदीक हैं
खामोशीयों के बीच सदा उसकी आ रही।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
अथाह सागर प्रेम का, थाह न पावे कोय।
बिन लालच तू प्रेम कर, मन भर आनन्द होय।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
किससे कहूँ दर्दे-दिल, किससे करूँ मैं शिकायतें
ज़िन्दगी में हर कदम पर गैरों की महफ़िल सजी।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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