कभी आओ तो तुमको मैं दिखला दूँ
मैंने किस शौक से अपने ग़म पाले हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं
गायब हो गयी हँसी, परेशान बहुत हैं
सँभालों साहिल पे बने रेत के महल
समंदरों में उफनाते तूफ़ान बहुत हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
सुनो जमाने के लोगों ये मेरे दिल की आवाज है
मोहब्बत छूट नहीं सकती, मेरा है वो मैं उसका हूँ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
कब तक देखेंगे हम ऐसे वहशी मंजर
न इंसान बचे न इंसानियत बची कहीं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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