सोई हैं आँखें जागते सपनों के साथ
लिपटी हैं ख्वाहिशें चँद साँसों के साथ
सन्नाटों का शोर गूंज रहा है हर तरफ
बीत रहे लम्हे नित नए सदमों के साथ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
चलो लौट चलें सुखन की दुनिया में
वहाँ कुछ तो चैनों-आराम मिलेगा।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
हम हँस-हँस कर अपने ग़म छुपाते हैं
तनहा होते हैं तो रो लेते हैं जी भर कर।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
कुछ पल तो हँस लें कहकहे लगा लें
यूँ ही जीते जाना कोई ज़िन्दगी नहीं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ज़िन्दगी मैखाना है मदहोश होकर जिये जाइये
जीस्त की दुश्वारियाँ जाम समझ कर पिये जाइये।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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