कुर्बानियाँ हमारी सब हैं भुला बैठे
जुबां पे सबकी हमारी शैतानियाँ हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
हुस्न भी है उनका कातिल और अदा भी है कातिल
हुस्न में शोख अदा भरकर वो खुद से झिझक रहे हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ज़िन्दगी में जाने कैसा ठहराव आया
कि खामोशियाँ भी दर्द से चीखती हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
अश्कों से जख्मों को धोकर आँखें ढूँढ़ती हैं
ज़िन्दगी में क्या पाया है और क्या खोया है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
इश्क के महमहाते गुलशन को बेजार न कर
अपने ही नाखूनों से नया ज़ख्म तैयार न कर।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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