Friday, January 6, 2023

{९९५}



हर तरफ फैला हुआ है ऐसा काला साया 
कि अब अपने साये से भी डर लगने लगा। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



मुसाफिर ही मुसाफिर हैं हर तरफ 
मगर हर शख्स तनहा जा रहा है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



लग जायेंगी अभी कई और सदियाँ 
इस दौर के इंसा को इंसा बनाने में। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



कभी लाता नहीं ज़बाँ पर हालात का शिकवा 
बस खुद को सुपुर्दे-ग़म कर दिया करता हूँ। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



बहुत  संगसार है  रास्ता  मेरे घर का  मानता  हूँ 
रख दूँगा हथेली पाँव के नीचे तुम आओ तो सही।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

No comments:

Post a Comment