Saturday, January 14, 2023

{१००४}




चाहता हूँ कभी मुझसे मेरी मुलाकात हो
हाल पूँछू अपने, कुछ दर्द अपने दुलराऊँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल




तुम मेरे कुछ नहीं लगते मगर जाने-हयात
दिल की हर धड़कन में बसे तुम ही तुम हो।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल




छिड़ी एक जंग खुद को लेकर खुद के भीतर
खुद में उलझा हूँ किसी और को क्या सुलझाऊँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल




दे दे तू अपने आगोश की तमाजत मुझको
कि सर्द आहें मेरा दामन-ए-जिगर चीरती हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

(तमाजत = गर्माहट)




उड़ रहा मोहब्बत का परिंदा आसमान में
हमारा आशियाँ आज फिर से निखर गया।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल




हम न कह सकते थे किसी से अपने दिल की बात
अब सुखन की आड़ में सब कुछ कहना आ गया।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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