रोम-रोम केसर घुली, चन्दन महके अँग
अब काहे की देर पिया, मोहे भर ले अँग ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
हँसी की आड़ में जो छुपा के रखे थे
वो दर्द आँसुओं सँग सामने आ गए।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
इश्क में ही जी रहे, इश्क में ही मर रहे
आशिकी में आखिर और होता क्या है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
इस दुनिया में इंसान बहुत हैं
अक्षत कम भगवान बहुत हैं
हर तरफ मुखौटे का चलन है
तुम झूठ कहो, ईनाम बहुत हैं।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
बंजर सी हो गई है अब ईमान की जमीं
आदमी में अब आदमीयत बची ही नहीं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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