Sunday, January 8, 2023

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रोम-रोम केसर घुली, चन्दन महके अँग 
अब काहे की देर पिया, मोहे भर ले अँग । 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



हँसी की आड़ में जो छुपा के रखे थे
वो दर्द आँसुओं सँग सामने आ गए। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



इश्क में ही जी रहे, इश्क में ही मर रहे 
आशिकी में आखिर और होता क्या है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



इस दुनिया में इंसान बहुत हैं 
अक्षत कम भगवान बहुत हैं 
हर तरफ मुखौटे का चलन है 
तुम झूठ कहो, ईनाम बहुत हैं।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



बंजर सी हो गई है अब ईमान की जमीं 
आदमी में अब आदमीयत बची ही नहीं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


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