हर कोई जख्मों की सौगात दे कर गया
राहे-उलफ़त का कोई हमसफ़र न बना।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
उम्मीदों का ये ख्वाब सुनहरा देखें
उसकी आँखों में अपना चेहरा देंखें
रुख उनका गैरों की ही जानिब क्यों
कभी वो इश्क हमारा गहरा देखें।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
होंठों पर हैं चुप्पियाँ, आँखों में बरसात
तरसूँ मैं पिय मिलन को, रोऊँ सारी रात।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
कोई नहीं कर सकता दूर किसी की तनहाई
हैं सूरज, चाँद, तारे, मगर तनहा आसमान है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
खंजरों से लिखी जा रही वफ़ा की इबारतें
मोहब्बत में फ़ना होने का चलन अब नहीं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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